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रेणु कश्यप

About रेणु कश्यप

पंजाब केसरी और हिमाचल दस्तक में काम करने के बाद 2015 से एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क में क्रिएटिव हेड के रूप में कार्यरत है। साथ ही समाचारों के लेखन और संपादन में भी अहम जिम्मेदारी निभाती है।

नाहन: देश की दूसरी सबसे पुरानी नगर परिषद के चुनाव में कांग्रेस-भाजपा के हैवीवेट     

January 1, 2021 by रेणु कश्यप Leave a Comment

नाहन, 1 जनवरी: देश की दूसरी सबसे पुरानी नगर परिषद नाहन की सत्ता को हासिल करने की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं। भाजपा के सामने इसे बरकरार रखने की चुनौती है, वहीं कांग्रेस के सामने इसे हासिल करने का चैलेंज है। कांग्रेस व भाजपा नेे अपने-अपने हैवीवेट भी उतारे हैं। नए चेहरे भी सामने हैं। 1995 से लगातार  नगर परिषद के एक पार्षद का पद सुक्खू भाई के घर में ही है। 1995 में पहली बार पत्नी पार्षद बनी थी। इसके बाद 2000 से खुद कोई चुनाव नहीं हारे हैं। यहां तक कि एक मर्तबा उपाध्यक्ष के परोक्ष चुनाव में लगभग 6800 वोट हासिल कर जीता था।

कांग्रेस में योगेश गुप्ता को नगर परिषद के चुनाव में हैवी वेट नेता माना जाता है। इस बार अहम बात यह है कि वो अपने गृह वार्ड 6 नंबर से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि 13 नंबर से चुनाव मैदान में उतरे हैं। अपना वार्ड अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुआ है। नजरें इस बात पर टिकी हैं कि अगर वो चुनाव जीतते हैं तो क्या 25 साल तक पार्षद बनने का रिकाॅर्ड होगा या नहीं। वार्ड नंबर 7 से चुनाव जीतने की हैट्रिक बना चुके राकेश गर्ग चौथी पारी के लिए मैदान में उतरे हैं।

उधर अगर बीजेपी की बात की जाए तो पाले में अविनाश गुप्ता व मधू अत्री जैसे हैवीवेट मैदान में हैं। गुप्ता लंबी अवधि के कार्यकाल में एक बार पार्षद का चुनाव हारे हैं, जबकि उपाध्यक्ष के सीधे मुकाबले में योगेश गुप्ता से शिकस्त मिली थी।

वहीं, मधू अत्री के खाते में भी चुनाव न हारने का रिकाॅर्ड है। एक बार चुनाव नहीं लड़ा था। उधर, बीजेपी का टिकट न मिलने पर वार्ड नंबर-9 से भाजपा की पार्षद रही शबाना चौहान ने आजाद प्रत्याशी के तौर पर ताल ठोकी है। वार्ड नंबर 1 से अशोक विक्रम को भी भाजपा का बिग शाॅट माना जाता है। अहम बात यह है कि  भाजपा के संगठन में कई पदों पर आसीन रह चुके देवेंद्र अग्रवाल इस चुनाव में पार्टी के 7 नंबर वार्ड से प्रत्याशी हैं।

     वार्डों के आरक्षित होने पर 8 नंबर से पार्षद कपिल गर्ग उर्फ मोंटी ने अपनी पत्नी रीतिका गर्ग को मैदान में उतारा है। वहीं भाजपा से शुभम सैनी ने भी अपनी पत्नी मनजीत सैनी को वार्ड नंबर 9 से बीजेपी का प्रत्याशी बनाया है। कुल मिलाकर चुनावी मैदान में आधा दर्जन हैवीवेट चेहरे हैं, जबकि नए चेहरे भी अपना भाग्य आजमाते नजर आ रहे हैं।

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Unsung Covid Warrior : गरीबों के दांत दर्द पर मरहम लगाते रहे डॉ. अमन धीमान 

December 16, 2020 by रेणु कश्यप Leave a Comment

नाहन, 16 दिसंबर : अक्सर ही मामूली सी नेक सेवा करने के बाद जुड़ी तस्वीरें और वीडियो को सोशल मीडिया( Social Media) में अपलोड करने में देरी नहीं की जाती। लेकिन कुछ ऐसे होते हैं, जो खामोशी से ही नर सेवा में कदम आगे बढ़ाते रहते हैं। ऐसी ही एक मिसाल शहर में निजी डेंटल क्लीनिक (Private Dental Clinic) चला रहे डॉ. अमन धीमान बने हैं। अब जाकर इस बात का खुलासा हुआ है कि लॉकडाउन(Lock down) के बाद दो हफ्ते तक तो क्लीनिक पूरी तरह से बंद रहा। इस दौरान दांत (Teeth) की असहनीय दर्द (Intolerable Pain) को लेकर कई लोग अस्पताल पहुंच रहे थे, मगर उपचार (Treatment) न मिलने की वजह से वह निजी क्लीनिक की तलाश में लग जाते थे।

ट्रीटमेंट करते डॉ अमन धीमान

  जैसे ही सरकार ने लॉकडाउन में इमरजेंसी सेवाओं (Emergency Services) को जारी रखने का फैसला लिया तो डॉ. अमन ने भी क्लीनिक (Clinic)) में सेवाओं (Services)को शुरू (Start) कर दिया। ऐसे में डॉ. अमन धीमान उनके लिए एक मसीहा से कम साबित नहीं हुए। एक दिन में ही 40 से 50 मरीजों को देखने में लगे रहे। शिक्षक माता-पिता के बेटे डॉक्टर अमन ने डेंटल एजुकेशन(Dental Education) के क्षेत्र में एमडी की शिक्षा हासिल की है।

   बता दें कि एक मरीज (Patient) के चैकअप(Checkup) में 20 से 30 मिनट लगते है। कई बार ट्रीटमेंट(Treatment) लंबा भी चलता है। चूंकि निजी क्षेत्र में डेंटल ट्रीटमेंट महंगा माना जाता है, यही कारण होता है कि सामान्य या गरीब लोग (Poor People) अस्पताल का रुख करते हैं। लेकिन डॉ अमन ने किसी को भी खर्च का अहसास नहीं होने दिया। डॉ अमन धीमान ने ना केवल अपनी फीस(Fees) को छोड़ा बल्कि गरीबों से मामूली सा शुल्क लिया ताकि मास्क के खर्च की भरपाई हो सके।

     लाजमी तौर पर आपके जहन में एक सवाल यह भी उठ रहा होगा कि जब डॉक्टर धीमान की इस तरह से जनसेवा का खुलासा कई महीने तक नहीं हुआ तो अब अचानक ही कैसे मीडिया तक इसकी जानकारी पहुंची।

   दरअसल हुआ यूं कि डॉक्टर धीमान से ट्रीटमेंट (Treatment) लेने वाले एक मरीज (Patient) ने ही एमबीएम न्यूज नेटवर्क को इस बात की जानकारी दी। जब इसकी पड़ताल(Verification) की गई तो पाया गया कि वास्तव में डॉक्टर धीमान आज भी रोजाना दो से तीन ऐसे मरीजों को ट्रीटमेंट दे रहे हैं, जो फीस देने में समर्थ नहीं होते। बता दें कि कन्या वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला के ठीक सामने पोस्ट ऑफिस(Post office) के साथ डॉक्टर धीमान अपना क्लीनिक चला रहे हैं।

    उधर जब इस बारे डॉक्टर अमन से बात की गई, तो उन्होंने बेहद ही सादगी पूर्ण तरीके से कहा कि वह  समाज के प्रति दायित्व निभा रहे हैं। इसको लेकर कोई पब्लिसिटी नहीं चाहते। अलबत्ता इतना जरूर माना कि वैश्विक महामारी (Pandemic) में लॉकडाउन(Lock down) के दौरान  जो सिलसिला शुरू  किया था जो अब भी जारी है। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन से पहले ग्लब्स (Gloves) का एक बॉक्स 4000 में आता था जो अब 12000 में मिल रहा है।

    उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान सामान्य ओपीडी से कहीं अधिक रोगियों की जांच की। दांत का एक ऐसा दर्द होता है जिसे बर्दाश्त करना बेहद ही मुश्किल होता है। ऐसे में वह उन लोगों का दर्द समझ रहे थे जो लॉकडाउन के दौरान ट्रीटमेंट के लिए भटक रहे थे।

  कुल मिलाकर एक युवा डेंटल सर्जन(Young dental Surgeon) वैश्विक महामारी के एक अनसंग कोरोना वॉरियर(Unsung Corona Warrior) है। जिनकी नर सेवा के बारे में किसी को पता ही नहीं था। दीगर है कि वैश्विक महामारी के दौरान मामूली राशन बांटने पर भी जन सेवकों द्वारा प्रेस विज्ञप्ति जारी की जाती थी। राजनीतिक दलों से जुड़े संगठन आज भी ऐसा ही कर रहे हैं। मगर डॉक्टर अमन धीमान ने ऐसा कुछ नहीं किया।

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दिल्ली में कोरोना संक्रमित बुजुर्ग का मददगार बना “सिरमौरी शिवी”…डोनेट किया प्लाज्मा

December 1, 2020 by रेणु कश्यप Leave a Comment

नाहन, 01 दिसंबर : देश (Country) की राजधानी (Capital) में एक अनजान (Unknown) कोरोना संक्रमित बुजुर्ग (Old Person) के लिए सिरमौर के नाहन विकास खंड के आंबवाला का रहने वाले शिवी चौहान मददगार बना। हालांकि स्पष्ट नहीं है, लेकिन संभव है कि सिरमौर से शिवी चौहान पहले ही ऐसे शख्स बने हैं, जिन्होंने कोरोना संक्रमित के उपचार के लिए प्लाज्मा डोनेट (Plasma donation) किया है।

      उल्लेखनीय है कि दिल्ली में शुरू से ही कोरोना संक्रमितों को स्वस्थ करने के लिए प्लाज्मा थैरेपी (Plasma Therapy) का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। इसका तर्क यह है कि संक्रमित व्यक्ति (Infected person) के ठीक होने के बाद उसके शरीर में रोग प्रतिरोधक (Anti body) क्षमता विकसित हो जाती है। इसका इस्तेमाल दूसरे संक्रमित को ठीक करने के लिए प्लाज्मा के माध्यम से किया जा सकता है। हिमाचल में कांगड़ा से पहले संक्रमित ने प्लाज्मा डोनेट करने को हामी भरी थी, लेकिन यह साफ नहीं है कि युवक ने बाद में प्लाज्मा डोनेट किया या नहीं।

प्लाज्मा डोनेट करते शिवी चौहान

     बहरहाल शिवी चौहान की नेक सेवा में इंडियन यूथ कांग्रेस (Indian Youth Congress) की रिलीफ टीम (Relief team) कड़ी बनी है। भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के आग्रह पर शिवी को नेक कार्य करने का अवसर मिला। 27 नवंबर को दिल्ली के ही  एक अस्पताल में शिवी ने प्लाज्मा डोनेट किया, जिसे तुरंत ही रिलीफ टीम ने मैक्स अस्पताल में भर्ती एक कोरोना संक्रमित बुजुर्ग को उपलब्ध करवाया। बुजुर्ग के लिए कई घंटों के संघर्ष के बाद प्लाज्मा का इंतजाम हो पाया था।

     युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बीवी श्रीनिवास ने अपनी एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा था कि वो भारतीय युवा कांग्रेस के सचिव शिवी चौहान, दिल्ली युवा कांग्रेस के गौरव कौशिक, दिव्यांश, गिरधर व जय प्रकाश के समपर्ण को सलाम करते हैं। बता दें कि इस समय शिवी चौहान (Shivi Chauhan) को हरियाणा यूथ कांग्रेस (Youth congress) की भी जिम्मेदारी मिली हुई है। पिछले कुछ दिनों से दिल्ली बाॅर्डर (Delhi Border) पर आंदोलन (Agitation) कर रहे किसानों को जरूरत का सामान उपलब्ध करवाने में भी भूमिका निभा रहे हैं।

ऐसे हुए थे संक्रमित…
दिल्ली में ही शिवी चौहान कोरोना संक्रमित हुए थे। आइसोलेशन (Isolation) के साथ-साथ तीन दिन तक राजधानी के ही एक अस्पताल (Hospital) में दाखिल रहे। इसके बाद काफी समय होम आइसोलेशन में भी बिताया। 20 अक्तूबर के बाद पूरी तरह से रिकवर हो गए। वापस अपने सामाजिक कार्यों (Social Works) के साथ-साथ संगठन की जिम्मेदारियों में तैनात हो गए। बातचीत के दौरान शिवी चौहान ने कहा कि प्लाज्मा डोनेशन खुद में ही एक सुकून देने वाला पल था। उनका कहना था कि यह प्रक्रिया ठीक उसी तरह से होती है, जैसे रक्तदान (Blood donation) किया जाता है। उन्होंने कहा कि कोरोना से ठीक हो चुके लोगों को प्लाज्मा डोनेशन  के लिए आगे आना चाहिए।

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अब नाहन शहर की पार्कों से भी होगी पहचान, 19 अक्तूबर 2020 को 4 का लोकापर्ण…

October 19, 2020 by रेणु कश्यप 1 Comment

नाहन, 19 अक्तूबर: 1621 में बसे शहर की पहचान तालाबों (Ponds) व सैरगाहों (Joggers Park) से होती आई है। लेकिन अब 1889 में बने रानीताल बाग (Ranital Garden) के बाद पहली बार एक साथ चार पार्कों (Parks)का लोकापर्ण किया गया है। इससे पहले रानी झांसी पार्क का उदघाटन पहले ही हो चुका है। विधायक डाॅ. राजीव बिंदल ने लोकापर्ण (Inauguration) के दौरान कहा कि शहर को बेहद ही योजनाबद्ध तरीके (well planned) से बसाया गया था। सोमवार को लोगों को समर्पित किए गए चार पार्कों में से दो की खासियत यह है कि इन स्थानों में पहले गंदगी फैली रहती थी।
श्री गुरु गोविंद सिंह जी पार्क एक ऐसी जगह को विकसित कर बनाया गया है, जहां से दिल्ली गेट  इलाके की गंदगी खुले में बहती थी। ऐसी ही स्थिति लखदाता पीर के साथ भी थी। यहां खाली जगह में बेतरतीब पार्किंग के अलावा कूड़े (Garbage)का ढ़ेर अक्सर नजर आता था। बिंदल ने ये भी कहा है कि आज का दिन ऐतिहासिक होने के साथ-साथ किसी पर्व(festival) से कम नहीं है। मालरोड(Mall Road) व हाउसिंग बोर्ड कालोनी(Housing board Colony) में भी पार्कों को विकसित किया गया है। एक अहम बात यह भी है कि शिमला रोड पर भी एक नाला गंदगी का पर्यायी था। धीरे-धीरे इसे विकसित कर पार्किंग बना दी गई है। इसका भी उदघाटन सोमवार को विधायक डाॅ. राजीव बिंदल द्वारा किया गया है।
गौरतलब है कि सोशल मीडिया (Social media) में अपलोड हो रही इन पार्कों की तस्वीरों में ‘‘मेरा नाहन बदल रहा है’’ की टैग लाइन (Tag line) भी दी जा रही है। पार्कों को विकसित(Development) करने के लिए करीब-करीब एक करोड़ रुपए की राशि व्यय की जा रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि विधायक डाॅ. राजीव बिंदल की सोच को तेज गति से क्रियान्वित (Execution) करने के सूत्रधार कार्यकारी अधिकारी, नगर परिषद ठाकुर अजमेर सिंह बने हैं। नगर परिषद की अध्यक्षा के तौर पर रेखा तोमर के कार्यकाल में इन कार्यों को अमलीजामा पहनाया गया है।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि दो पार्कों व एक पार्किंग को गंदे नालों को कवर कर विकसित किया गया है। शहर में खाली पड़ी भूमि का इस्तेमाल योजनाबद्ध (Planned) तरीके से जन सुविधाओं के लिए किया गया जा रहा है। बिंदल ने चार पार्कों व एक पार्किंग के अलावा डिग्री काॅलेज में जिम व कैंटीन की उदघाटन पट्टिका का भी अनावरण किया।

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अटल टनल लोकापर्ण में मोदी के मंच पर “सिरमौरी लाल” के पार्श्व स्वर, लाइव पर दमदार आवाज

October 3, 2020 by रेणु कश्यप Leave a Comment

मनाली/नाहन, 03 अक्तूबर : विश्व के ताकतवर प्रधानमंत्रियों में से एक नरेंद्र मोदी के समक्ष चंद मीटर के फासले से अपनी काबलियत को सामने लाने का मौका करोड़ो में किसी एक को हासिल होता है। वो भी मौका ऐसा, जब आपकी दमदार आवाज कमांड कर रही हो। जी हां, विश्व की सबसे ऊंची व लंबी सुरंग के लोकापर्ण (Inauguration) के मौके पर ऐसा अवसर प्राप्त हो तो हर किसी के लिए ये लाइफ टाइम अचीवमेंट (Life Time Achievment) ही होगी। 
जनसूचना व संपर्क विभाग (Public Relation Department) में उपनिदेशक (Deputy Director) के पद पर कार्यरत धर्मेंद्र ठाकुर (Dharmendra Thakur) को न केवल मंच संभालने का मौका हासिल हुआ, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बस को हरी झंडी दिखाने के बाद सोशल मीडिया में लाइव चल रहे कार्यक्रम में पार्श्व आवाज (Voice Over) भी धर्मेंद्र ठाकुर की थी। सिरमौर के मुख्यालय नाहन के रहने वाले धर्मेंद्र ठाकुर ने लगभग 24 साल पहले जन सूचना व संपर्क विभाग में बतौर जिला लोक संपर्क अधिकारी (District Public Relations Officer) के तौर पर कैरियर शुरू किया था। अंग्रेजी व हिन्दी भाषा में पकड़ रखने वाले धर्मेंद्र ठाकुर ने जनसूचना व संपर्क विभाग में कैरियर शुरू करने से पहले संघर्षपूर्ण जीवन (Struggling life) को भी महसूस किया है। एक काबिल शिक्षक भी रह चुके हैं।
 शनिवार को अटल टनल (Atal Tunnel) का लोकापर्ण आज पूरा देश तो लाइव देख ही रहा था, साथ ही सीमापार दुश्मन भी भारत की बढ़ती ताकत को देखकर कुंठित हो रहा होगा। लिहाजा, नाहन के एक काबिल बेटे की आवाज सिस्सू घाटी से निकलकर सीमा पार भी पहुंची होगी। सिस्सू (Sissu) के मंच पर देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, मुख्ययमंत्री जयराम ठाकुर, वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर के अलावा राज्य के कैबिनेट मंत्री राम लाल मारकंडा मौजूद थे। इनके साथ जन सूचना व संपर्क विभाग के अधिकारी धर्मेंद्र ठाकुर को भी मौजूद रहने का अवसर केवल इस कारण हासिल हुआ था, क्योंकि हिन्दी भाषा पर पकड़ तो रखते ही हैं, साथ ही एक सटीक (exact) आवाज के धनी भी हैं।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत करते हुए धर्मेद्र ठाकुर ने कहा कि वो अगले साल रिटायर हो रहे हैं। विभाग में सेवाओं के दौरान आज के कार्यक्रम को लाइफ टाइम अचीवमेंट मानते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा अवसर भाग्य से ही हासिल होता है। उनका कहना था कि देश के प्रधानमंत्री को बेहद ही करीब से काफी देर तक महसूस करने का मौका मिला। वो अलग ही व्यक्तित्व हैं। बता दें कि सिस्सू के बाद लाइव प्रसारण में धर्मेंद्र ठाकुर की ही आवाज सुनाई दे रही थी।

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धारटीधार: बाजीगर बनी पढ़ाई के लिए रोजाना 6 कि.मी. चलने वाली, मैरिट में 3 अंक से चूकी 

June 12, 2020 by रेणु कश्यप

नाहन : हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहा जाता है। ये बात धारटीधार क्षेत्र की अमिशा ने साबित कर दिखाई है। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला बिरला की छात्रा अमिशा शर्मा को रोजाना ही स्कूल आने के लिए 6 किलोमीटर पैदल न चलना पड़ता साथ ही स्कूल से लौटकर घर के कामकाज में हाथ न बंटाना होता तो वो लाजमी तौर पर स्कूल शिक्षा बोर्ड की मेरिट सूचि में सिरमौर होती। इन परिस्थितियों के बावजूद सामान्य परिवार की बेटी मात्र तीन अंको की कमी की वजह से मैरिट में स्थान पाने से चूक गई। 
      प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड द्वारा जारी की गई, 10वीं कक्षा की मैरिट सूची में अमिशा बेशक ही 3 अंकों से चूक गई हो, लेकिन बेटी के हौंसले बुलंद है। अमिशा ने 700 में से 679 अंक प्राप्त किए हैं। सुविधाओं के अभाव के चलते भी अमिशा की इस उपलब्धि पर स्कूल स्टाफ गदगद है तो अभिभावकों का भी सीना चौड़ा हुआ है। दरअसल एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क ने बुधवार को शंभूवाला की होनहार बेटी तपस्या की दास्ताँ को उजागर किया था, इसके बाद ही अमिशा की सफलता भी सामने आई।
     बातचीत के दौरान अमिशा ने बताया कि स्कूल के जाने के समय में तो बस उपलब्ध हो जाती थी, लेकिन छुट्टी के दौरान कोई बस नहीं मिलती थी, ऐसे में भाई-बहन व अन्य सहपाठियों के साथ प्रतिदिन 6 किलोमीटर का पैदल सफर तय कर घर लौटना पड़ता था। इसके बाद प्रतिदिन अपने खेत के अलावा घर के काम में माता-पिता के साथ हाथ भी बंटाती थी और शाम को पढ़ाई करती थी। अमिशा का कहना है कि उन्होंने कोई ट्यूशन नहीं ली, केवल स्कूल में शिक्षकों द्वारा करवाई गई पढ़ाई को ही रिवाईज करती थी। बेटी का यह भी कहना था कि मेरिट में न आने का दुःख तो है मगर कोई मलाल भी नहीं है क्योंकि आगे भी कई मौके है।
क्या कहते हैं माता-पिता व शिक्षक…
स्कूल के शिक्षक किशोरी लाल का कहना है कि अमिशा पढ़ाई में दिलचस्पी रखती है। स्कूल से जो भी काम दिया जाता था उसे गंभीरता से लेती है। अमिशा के पिता कुलदीप चंद व माता रेणु बाला ने बताया कि अमिशा पढ़ाई के साथ-साथ घर में उनका हाथ बंटाती है। उन्होंने बताया कि उनके पिता की छोटी दुकान है और वह स्वयं सिलाई अध्यापिका हैं, ऐसे में घर व खेत के काम को सभी मिलकर करते हैं। इसके बावजूद भी अमिशा पढ़ाई से कभी जी नहीं चुराती। उन्होंने कहा कि अब बेटियां भी समाज में अपने माता-पिता का नाम रोशन कर रही हैं, साथ ही अपने पांव पर खड़ा होकर दिखा रही हैं।

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मधुरभाषी यशपाल शर्मा बने IAS, रुतबा हासिल करने वाले पहले हाटी….

June 5, 2020 by रेणु कश्यप

नाहन : हिमाचल प्रदेश विधानसभा के सचिव के पद पर तैनात यशपाल शर्मा आईएएस अधिकारी बनने वाले पहले “हाटी” बन गए हैं। हालांकि पिछले 8 से 10 सालों के बीच ट्रांसगिरि खासकर नाया पंजोड क्षेत्र में ऐसा माहौल बना है कि युवा एचएएस बनने को लेकर खासे क्रेजी हैं। 1998 बैच के एचएएस अधिकारी यशपाल शर्मा ने सफलता अर्जित करने के बाद एक प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर अपना सफर शुरू किया था। हालांकि करीब-करीब 22 साल के सफर में शर्मा ने कई प्रशासनिक ओहदों को संभाला। लेकिन मौजूदा में हिमाचल विधानसभा के सचिव के पद पर अपनी जिम्मेदारी का वहन बेहतरीन तरीके से कर रहे हैं।

मधुरभाषी व सौम्य स्वभाव के यशपाल शर्मा से पहले ट्रांसगिरि क्षेत्र से किसी ने भी आईएएस का रुतबा हासिल नहीं किया है। पंजोड गांव में तुलसीराम शर्मा व तुलसा देवी के घर जन्में शर्मा की प्रारंभिक शिक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में ही हुई। हलाहं में सातवीं तक की पढ़ाई करने के बाद आठवीं की शिक्षा ददाहू के समीप दीद पनार में पूरी की। नैनीधार से दसवीं की पढ़ाई करने के बाद सोलन का रुख कर लिया था। बता दें कि एचएएस से आईएएस बने यशपाल शर्मा का छोटा भाई भी एचपीएस अधिकारी है। साथ ही उनकी पंचायत से ही दो एचपीएस व तीन एचएएस अधिकारी हैं। योगा व मेडिटेशन में गहरी दिलचस्पी रखने वाले यशपाल शर्मा ने नौणी विश्वविद्यालय में भी बतौर रजिस्ट्रार बेहतरीन सेवाएं दी हैं। इसके अलावा कनाडा व यूगांडा की यात्रा कर चुके हैं।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने वीरवार को हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक सेवा अधिकारियों को आईएएस में इंडक्ट करने की अधिसूचना जारी की है। कुल मिलाकर एक पहाड़ी बेटे की सफलता मायने रखती है, क्योंकि 20 साल पहले रिमोट इलाकों के बच्चे शहरों तक नहीं पहुंचते थे। उस जमाने में एचएएस की परीक्षा का सपना देखना अपने आप में ही एक हिम्मत थी। ट्रांसगिरि के हाटी से जुड़े इतिहास की जानकारी रखने वाले शेरजंग चौहान का कहना है कि निश्चित तौर पर ट्रांसगिरि से आईएएस बनने वाले यशपाल शर्मा ही पहली शख्सियत हैं।

एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में आईएएस यशपाल शर्मा ने कहा कि परीक्षा को उत्तीर्ण करने में कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। चूंकि पहले दो बड़े भाई सरकारी नौकरी में थे, लिहाजा आर्थिक तौर पर परेशानी नहीं हुई, मगर मार्गदर्शन की चुनौती बड़ी थी।

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नाहन : 4 दिन पैदल चल बेटी के साथ पटियाला से मायके पहुंची महिला, मां ने नहीं दिया प्रवेश…

April 22, 2020 by रेणु कश्यप

नाहन : अब तक आप यह खबरें तो पढ़ रहे हैं कि लोग छिपते-छिपाते घर पहुंच रहे हैं। इसकी जब सूचना गोपनीय तरीके से प्रशासन तक पहुंचती है तो एक्शन होता है। लेकिन यहां परिवार यह तक भूल गया कि घर की बेटी ससुराल के क्लेश से दुखी होकर अपनी 20 साल की बेटी सहित चार दिन पैदल चलकर पंजाब के पटियाला से मायके पहुंची है। फर्ज निभाते हुए मां ने ही बेटी व दोहती के आने की इत्तला पहले कच्चा टैंक पुलिस को दी। फिर, 108 के माध्यम से मां-बेटी को क्वांरटाइन किया गया।
मामला, शहर की वाल्मीकि बस्ती से जुड़ा हुआ है। रात साढ़े 12 बजे के आसपास पटियाला से महिला अपनी बेटी के साथ पहुंची थी। प्रारंभिक जानकारी में पुलिस को पता चला कि दोनों ही 18 अप्रैल को पैदल ही नाहन के लिए चलना शुरू हुई थी। चूंकि वहां बेटी के साथ ससुराल में घरेलू हिंसा हो रही थी। यही कारण रहा हो कि महिला अपनी बेटी को लेकर वापस आ गई। 38 साल की महिला के पति की मौत हो चुकी है। वो 20 साल की बेटी के साथ मायके पहुंची है। प्रशासन व पुलिस को परिवार ने इस तरह का उदाहरण पेश कर प्रभावित किया है।
उपायुक्त डॉ. आरके परुथी का कहना है कि सूचना मिलने के बाद तुरंत ही मेडिकल टीम कच्चा टैंक पहुंची। इसके बाद 108 की मदद से महिला को बेटी सहित क्वारंटाइन किया गया है। उधर, संभावना जताई जा रही है कि दोनों के ही सैंपल लिए जा सकते हैं। 24 घंटे तक इंस्टीटयूशनल क्वारंटाइन में ही रहना होगा। अगर रिपोर्ट नेगेटिव आती है तो महिला को बेटी समेत होम क्वारंटाइन कर दिया जाएगा। उपायुक्त का यह भी कहना है कि पुलिस व प्रशासन को इस तरह से सहयोग मिलता रहेगा तो लाजमी तौर पर संकट से उबरने में सरकार को मदद मिलेगी।

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हिमाचल का कोरोना कर्मवीर: दूर से देखता रहा नवजात बेटे का अंतिम संस्कार,पत्नी को नहीं लगा सका गले..   

April 11, 2020 by रेणु कश्यप

नाहन : अब तक आप देश के कई हिस्सों से ऐसी खबरें पढ़ते आए हैं कि कोरोना के कर्मवीर कैसे ड्यूटी निभा रहे हैं। ऐसा ही उदाहरण हिमाचल के नाहन में भी देखने को मिला है, जहां एक पुलिसकर्मी की दुख भरी दास्तां सामने आई है। जिसे आप जानकर यह मानने पर विवश हो जाएंगे कि आपका जीवन बचाने के लिए कैसे कर्मवीर परिवारों को छोड़कर ड्यूटी निभा रहे हैं। शहर के चौगान मैदान के समीप ट्रैफिक पुलिस के कांस्टेबल अर्जुन ने ड्यूटी के प्रति अपने समर्पण की मिसाल पेश की है। कांस्टेबल अर्जुन की गर्भवती पत्नी सुमन करीब 120 किलोमीटर दूर शिलाई में प्रसव पीड़ा से कराह रही थी, लेकिन कोरोना का कर्मवीर ड्यूटी छोड़कर नहीं जा सकता था। कांस्टेबल की पत्नी को शिलाई से नाहन रैफर कर दिया गया। दुखों का पहाड़ उस समय टूट गया जब मासूम ने मां की कोख में जन्म लेने से पहले ही दम तोड़ दिया। अब आप सोच रहे होंगे कि क्यों कांस्टेबल अर्जुन ना तो नवजात के अंतिम संस्कार में हिस्सा ले सकता था और ना ही पत्नी को गले मिलकर दिलासा दे सकता था।  

    चंद रोज पहले सिरमौर में कोरोना पॉजीटिव पाए गए एक जमाती को बद्दी छोड़ना था। अर्जुन भी उस टीम में शामिल थे जो रोगी को लेकर बद्दी गई थी। लिहाजा कुछ समय तक परिवार से दूरी बनाने की हिदायत मिली हुई है। शिलाई में पुलिस कांस्टेबल के पद पर तैनात उनकी पत्नी सुमन 8 माह की गर्भवती थी, करीब 2 महीने से कोरोना के खिलाफ ड्यूटी कर रहे कांस्टेबल अर्जुन चाह कर भी अपनी गर्भवती पत्नी के पास नहीं जा पा रहे थे। वीरवार को आपातकालीन स्थिति में उनकी पत्नी को शिलाई से नाहन रैफर कर दिया गया, लेकिन परिवार के पांव तले उस समय जमीन खिसक गई जब पता चला कि बच्चे की धड़कन नहीं चल रही। इसके बाद नॉर्मल डिलीवरी से मृत नवजात को निकाल लिया गया। विडंबना देखिए, कांस्टेबल अर्जुन अपनी पत्नी को इस दुख की घड़ी में गले मिलकर भी दिलासा नहीं दे पाए। इसकी वजह यह थी कि वह कोरोना पॉजीटिव पाए गए एक जमाती को बद्दी तक छोडऩे के लिए पुलिस टीम में शामिल थे।

  प्रोटोकॉल भी यही कहता है कि अगर पॉजीटिव के आसपास मौजूद रहे हैं तो उस स्थिति में परिवार से दूरी बनानी होगी। सावधानी से कांस्टेबल अर्जुन ने अपने मृत नवजात बच्चे को कोलर तो पहुंचा दिया, लेकिन अंतिम संस्कार में हिस्सा नहीं लिया। गांव के लोगों ने ही नवजात का अंतिम संस्कार किया। इसके बाद वापिस नाहन लौट आए। हालांकि विभाग ने इस दुख की घड़ी में कांस्टेबल अर्जुन की छुट्टी स्वीकृत कर दी है, मगर वह गांव में जाने के बाद भी आइसोलेट ही रहेंगे।

एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में अर्जुन ने रूंधे गले से बताया कि गुरुवार को पत्नी का प्रसव हुआ। 8 महीने के बेटे की गर्भ में ही मौत हो गई। क्योंकि वह कोरोना पॉजीटिव मरीज को बद्दी छोडऩे गए थे, लिहाजा पत्नी सहित परिवार के किसी भी सदस्य को सीधे नहीं मिले और दूरी बनाए रखी। अब पत्नी की देखभाल भी चुनौती है जो इस समय मेडिकल कॉलेज में दाखिल है। गर्भ में आठ माह के बच्चे की मौत के बाद माँ को भी उपचार की आवश्यकता होती है, जो रिस्की भी होता है।  

 

कुल मिलाकर आज कांस्टेबल अर्जुन के इस दुख की घड़ी में प्रदेश के हर एक व्यक्ति को खड़ा होना चाहिए। गौर हो कि शहर के चौगान मैदान के समीप पुलिस गुमटी में तैनात रहने वाली ट्रैफिक पुलिस की टोली पहले भी कई मर्तबा चर्चा में आ चुकी है। लॉक डाउन होने के बाद एक शख्स प्रदेश की राजधानी से नाहन तक पैदल ही पहुंच गया था। पैदल नाहन पहुंचने वाले शख्स की एक टांग नहीं थी, जिसे देख कर उक्त टीम ने शख्स की न केवल इमदाद की बल्कि शिलाई तक उसके घर पहुंचाने की व्यवस्था भी की। पुलिस कर्मियों की इस तरीके की मिसाल राष्ट्रीय मीडिया में भी चर्चा का विषय बनी थी। इसके अलावा एक ट्रैफिक पुलिसकर्मी ने करीब 1 साल पहले ईमानदारी की मिसाल पेश करते हुए करीब 20,000 की राशि लौटाई थी।

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कोरोना संकट ने नाहन को याद दिलाया ‘‘घुघू’’…समय की पाबंदी था बताता

April 10, 2020 by रेणु कश्यप

नाहन : क्या आप जानते हैं कि 80 के दशक तक शहर में सुबह 10 व शाम 5 बजे “घुघू” (सायरन) समय की पाबंदी का ऐलान करता था। मौजूदा में डाईट के सामने इसका प्लेटफार्म हुआ करता था। इसके बजते वक्त बच्चों में देखने की प्रबल इच्छा होती थी। शहर के बीचोंबीच इसे ऐसी जगह स्थापित किया गया था, जहां से इस सायरन की आवाज शहर के हरेक कोने तक पहुंचती थी। यह सायरन नाहन फाउंडरी के कर्मचारियों को डयूटी शुरू होने व खत्म होने की जानकारी देता था। अब आप सोच रहे होंगे कि कोरोना से इसका क्या लेना-देना है।

दरअसल, कर्फ्यू लागू है। इन दिनों भी एक हल्की सी आवाज उस समय सुनाई देती है, जब दोपहर में डेढ़ बजे के आसपास कर्फ्यू में ढील की मियाद खत्म होती है। अगर 80 के दशक का घुघू होता तो आज भी इसकी सार्थकता हो सकती थी। खैर, अब आपके जहन में यह भी सवाल उठ रहा होगा कि 80 के दशक के बचपन की याद कैसे ताजा हो गई। दरअसल, 90 के दशक के आखिर में शहर पर बोझ बढ़ने लगा। इससे पहले खुली व साफ सड़कों के साथ ताजा आबोहवा में जीवन यापन हुआ करता था। 2000 शुरू होने के बाद तो शहर पर वाहनों व आबादी का बोझ तेजी से बढ़ा। पिछले 10 साल में तो बेशक ही जनगणना में आबादी कुछ भी हो, लेकिन धरातल पर आंकड़ा 60 हजार से उपर ही है। इसकी वजह यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों से बड़े स्तर पर माइग्रेशन हो चुकी है।

जानकार बताते हैं कि जिस तरीके से माइग्रेशन हुई, उस अनुपात में मूलभूत ढांचा नहीं सुधरा, क्योंकि सरकारी योजनाएं केवल ओर केवल जनगणना के आधार पर ही चलती हैं। इसमें माइग्रेट आबादी को जोड़ने का कोई प्रावधान नहीं होता। बहरहाल, कोरोना संकट ने घुघू की याद तो दिलाई ही है, साथ ही उस जमाने को भी उन लोगों को याद दिला दिया है जो 80 के दशक में बाल्यकाल से गुजर रहे थे। कोरोना संकट में सड़कें उसी तरह से खाली है, हवा की गुणवत्ता भी 80 के दशक वाली ही महसूस हो रही है। सड़कों व गलियों की सफाई भी आज 30 साल पुरानी यादों को ताजा कर रही है। उल्लेखनीय है कि पिछले 15 साल में शहर ने बेतरतीब भवन निर्माण का दौर भी देखा है।

गौर हो कि सायरन का नाम घुघू इसलिए पड़ा था, क्योंकि इसकी आवाज बहुत ज्यादा तेज थी जो घू-घू कर दूर-दूर तक सुनाई देती थी।

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