एमबीएम न्यूज़/नाहन
प्रदेश के प्रसिद्व लोक कलाकार जोगेंद्र हाब्बी के सौजन्य से सिरमौर में काठ के मुखौटे की कला जीवित हैं। विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके इस आर्ट को हाब्बी जीवित रखने की कोशिश में लगे हुए है। इसी कड़ी में जालग गांव में हस्तशिल्प एवं मुखौटा निर्माण पर 24 से 26 मार्च तक तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन कर 10 प्रशिक्षुक कलाकारों को लोकनृत्य परिधानों तथा मुखौटा निर्माण का प्रशिक्षण दिया।
जोगेंद्र हाब्बी पिछले लगभग 20 वर्षों से हिमाचल प्रदेश की लोक संस्कृति के सवंर्धन के लिए प्रयत्नशील है। हस्तशिल्प, मुखौटा निर्माण आदि काल के लोक नृत्यों तथा स्वांगों में उपयोग होने वाले दुर्लभ परिधानों के निर्माण हेतु कार्यशाला का आयोजन कर एक सराहनीय पहल कर रहे है। चूडेश्वर मंडल लोक नृत्य, लोक संगीत, लोक वाद्य की विभिन्न विधाओं पर पिछले कई वर्षों से लोक कलाकारों को प्रशिक्षण देने के लिए ऐसी कार्यशालाएं आयोजित करता रहा है जिससे आज की युवा पीढ़ी को प्रदेश एवं सिरमौर की प्राचीन समृद्ध संस्कृति व हस्तशिल्प की जानकारी प्राप्त हो रही है।
मुखौटा निर्माण शैली संबंधी बजुर्ग कलाकारों के अनुसार मुखौटे का निर्माण लकड़ी के बुरादे तथा उडद के बारीक पाउडर से किया जाता है।जिसे अतीत में स्वांगों तथा विभिन्न नृत्यों में प्रयोग किया जाता रहा है। कार्यशाला के दौरान लकड़ी के मुखौटा भी तैयार किए गए जिन्हें सींहटू नृत्य के परिधानों में प्रयोग किया जाता है। सींहटू नृत्य गांव लेऊ कुफर के मंदिर में आज भी विभिन्न पर्वों के दौरान किया जाता है।
चूड़ेश्वर लोक नृत्य सांस्कृतिक मंडल की अध्यक्षा सरोज कुमारी ने बताया कि दुलर्भ एवं विलुप्त हो रहे सींहटू नृत्य को संवारकर जोगेन्द्र हाब्बी तथा विद्यानन्द सरैक के अतिरिक्त चूड़ेश्वर लोक नृत्य सांस्कृतिक मंडल के कलाकारों द्वारा प्रदेश व देश के विभिन्न मंचों पर प्रस्तुत किया गया जिसे दर्शकों द्वारा सराहा गया।