अमरप्रीत सिंह/सोलन
डॉ वाईएस परमार उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र, धौलाकुआं को देश में डेहलिया फूल की टैस्टिंग का “लीड सेंटर” नामित किया गया है। भारत सरकार के कृषि सहकारिता और किसान कल्याण विभाग के पौधा किस्म और कृषक अधिकार प्राधिकरण ने धौलाकुआं अनुसंधान केंद्र को इस प्रतिष्ठित राष्ट्रीय स्तर का “लीड सेंटर” बनाया है।
आने वाले समय में राज्य में डेहलिया की खेती को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि यह पहली बार है किसी परियोजना के तहत इस फूल की विभिन्न क़िस्मों को हिमाचल में टैस्टिंग के लिए लाया गया है। स्टेशन पर चल रहे अनुसंधान से आने वाले समय में प्रदेश के किसानों के बीच डेहलिया की व्यवसायिक खेती को लोकप्रिय बनाने में मदद मिलेगी।
इस अनुसंधान केंद्र को फूलों पर शोध कार्य करते ज्यादा समय नहीं हुआ है। वर्ष 2012 में सजावटी पौधों पर काम शुरू किया गया था। पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में अनुसंधान केंद्र ने काफी प्रगति की है। पौधा किस्म और कृषक अधिकार प्राधिकरण ने 2016-17 में 18 लाख रुपये की राशि की एक परियोजना इस केंद्र को स्वीकृत की थी। इसके तहत डेहलिया के विभिन्न रंग, आकार और श्रेणियों की 50 से अधिक किस्में उत्तराखंड और आसपास के क्षेत्रों से केंद्र पर लाई गई।
मुख्य अन्वेषक डॉ. प्रियंका ठाकुर ने बताया कि इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य डेहलिया का डीयूएस टैस्टिंग के दिशा-निर्देशों का विकास और फूल कि विभिन्न प्रजातियों का मूल्यांकन करना है। रूपात्मक लक्षण वर्णन, डीयूएस परीक्षण दिशा निर्देशों का विकास और स्टेशन पर डेहलिया के लिए डीयूएस केंद्र की स्थापना का कार्य वर्तमान में चल रहा है। हिमाचल के किसान इस नई फसल को कट फ्लावर के साथ-साथ,पॉट प्लांट प्रोडक्शन के लिए भी अपना सकते हैं, जो न केवल फसल विविधीकरण में मददगार होगा, बल्कि प्रदेश कि अर्थव्यवस्था और किसानों कि आय बढ़ा सकती है। डेहलिया पॉट प्लांट प्रोडक्शन, बॉर्डर, मास प्लांटेशन और कट फ्लावर आदि के लिए उपयुक्त है।
केंद्र द्वारा किए गए शोध में पाया है कि माटुंगिनी, मदर टेरेसा, सिस्टर निवेदिता, तेनजिन, सूर्यदेव, जिशु, गिलोडी, एसपी कमला जैसी किस्में निचली पहाड़ी परिस्थितियों के लिए उपयुक्त पाई गई है। कट फ्लावर उत्पादन के लिए माटुंगिनी, जिशु, सोहिनी, ब्लैक इटरनिटी, सूर्यदेव, मां शारदा किस्में उपयुक्त पाए गए हैं। डेहलिया ‘फूलों का राजा’ नाम से भी मशहूर है। पौधों की ऊँचाई विभिन्न क़िस्मों में अलग-अलग पाई जाती है और दो इंच लॉलीपॉप शैली से लेकर विशाल 10-15 डिनर प्लेट स्टाइल के फूल 4-5 फीट की ऊंचाई तक बढ़ सकते हैं।
फरवरी से मई माह तक यह फूल खिला रहता है। किसान कट फ्लावर, गमले और लैंडस्केप पौधों और पौधों के उत्पादन से लाभांश कमा कर सकते हैं। नौणी विश्वविद्यालय के छात्र भी हिमाचल प्रदेश की निचली पहाड़ी परिस्थितियों के लिए डेहलिया की किस्मों के मूल्यांकन पर काम कर रहे हैं।क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र, धौलाकुआं के एसोसिएट निदेशक डॉ एके जोशी ने बताया कि डेहलिया परीक्षण के राष्ट्रीय स्तर के लीड सेंटर की मान्यता पाना एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि यह सर्दियों में खिलने वाला बहुत ही लोकप्रियऔर उपयोगी फूल है।
डॉ जोशी ने कहा कि इस मान्यता से अनुसंधान स्टेशन द्वारा किए जा रहे कार्य को देश में पहचान मिलने के साथ-साथ राज्य में इस फूल की व्यवसायिक खेती को लोकप्रिय बनाने में मदद मिलेगी। डेहलिया को बीज के विभाजन और कलमों के माध्यम से उगाया जाता है। निचली पहाड़ी वाले क्षेत्रों में डेहलिया की कुछ किस्में अक्टूबर से दिसंबर महीनों के दौरान खिलती है। राज्य के निचले क्षेत्र विशेष रूप से पांवटा-दून घाटी में डेहलिया के खिलने की अवधि लंबी है। इसी कारण देश में डेहलिया के फूल टेस्टिंग के लिए धौलाकुआं स्टेशन को लीड स्टेशन के रूप में नामित किया गया है।