एमबीएम न्यूज/शिमला/नाहन
जीएसटी के बड़े फर्जीवाडे़ के पर्दाफाश होने के बाद उद्योग जगत में हडकंप मचा हुआ है। हर किसी के मन में कई सवाल उठ रहे हैं। इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यही था कि क्या विभाग अपने स्तर पर गिरफ्तारियां कर सकता है। तो खंगालने पर इसका जवाब हां में आया है। पांच करोड़ से अधिक के फर्जीवाडे़ में विभाग अपने स्तर पर कार्रवाई करता है। पुख्ता सूत्रों के मुताबिक एक्साइज कमीश्नर की मंजूरी के बाद ही संयुक्त आयुक्त को गिरफ्तारी की मंजूरी मिली थी।
सूत्रों का यह भी कहना है कि विभाग के पास अपने लॉकअप नहीं हैं, लिहाजा परवाणु पुलिस के लॉकअप में उद्योगपतियों को रखा गया है। वहीं जाकर विभाग के अधिकारी पूछताछ कर रहे हैं। अदालत के आदेश के बाद ही परवाणु पुलिस ने उद्योगपतियों की कस्टडी ली है। हालांकि विभाग उद्योगपतियों के नामों का खुलासा नहीं कर रहा, लेकिन बताया जा रहा है कि दोनो एक ही कंपनी के पार्टनर हैं। मंगलवार को गिरफ्तार उद्योगपतियों को कसौली में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया गया। जहां से पांच दिन के रिमांड पर भेजा गया है। विभाग की तरफ से सीनियर एडवोकेट अंकुश दास सूद ने पैरवी की।
सूत्रों का कहना है कि अमूमन उद्योगपति सरकार के टैक्स को हलके तरीके से लेते हैं। पकड़े जाने की सूरत में महंगे एडवोकेट को हायर कर लेते हैं। इसके बाद मामला अपील में चलता रहत है। लेकिन इस बार विभाग ने फ्रॉड करने वाले उद्योगपतियों को सलाखों के पीछे पहुंचाकर सख्त संदेश भी दे डाला है। जुटाई गई जानकारी के मुताबिक जीएसटी फ्रॉड के मामले में पांच साल तक की कैद का प्रावधान भी है। सूत्रों का यह भी कहना है कि इस फ्रॉड की एक चेन बन गई थी। एक-दूसरे को देखकर अन्य लोग भी टैक्स चोरी में संलिप्त हो गए। यही वजह है कि 6 अन्य उद्योगपतियों पर भी गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है।
सूत्रों का यह भी कहना है कि हरियाणा के लाडवा व करनाल के रहने वाले दो व्यक्तियों ने सुकेती रोड पर किराए पर फैक्टरी खोल रखी थी। उधर संयुक्त आयुक्त (राज्य कर व आबकारी) डॉ. सुनील कुमार ने गिरफ्तार उद्योगपतियों को पांच दिन का रिमांड मिलने की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि आरोपियों से गहन पूछताछ की जा रही है।
खुफिया नेटवर्क…
पुख्ता सूत्रों का कहना है कि कंप्यूटराइज्ड तरीके से इस फ्रॉड को नहीं पकड़ा गया है। बल्कि विभाग को खुफिया नेटवर्क के माध्यम से इस गोरखधंधे का पता चला। इसके बाद विभाग के अधिकारियों ने जाल बिछाना शुरू किया। दिल्ली में व्यक्तिगत तौर पर रिकॉर्ड को खंगालने की कोशिश की गई। पहला शक इस बात पर हुआ कि दो महीने में तीन फर्मों ने 60 करोड़ का कच्चा माल कहां से खरीदा। जब कच्चे माल के विक्रेता नहीं मिले तो विभाग का शक यकीन में बदल गया।
इस लिंक पर भी जुडी खबर https://goo.gl/L6PNRB
नॉर्थ इंडिया….
माना जा रहा है कि उत्तर भारत में किसी राज्य के स्तर पर यह अपनी तरह का पहला मामला है। स्टेट एक्साइज विभाग ने इस तरह की गिरफ्तारियां नहीं की हैें। अगर मामला सामने आता है तो सैंट्रल एक्साइज के हवाले कर दिया जाता है। सैंट्रल एक्साइज के पास अपने लॉकअप भी हैं। सूत्रों का यह भी कहना है कि विभाग ने गिरफ्तारियों से पहले पंजाब के एक्साइज महकमे को भी मार्गदर्शन के लिए संपर्क साधा था। वहां से मामला सैंट्रल एक्साइज को सौंपने की बात कही गई, लेकिन हिमाचल के एक्साइज विभाग ने अपने स्तर पर ही हिम्मत दिखाकर पर्दाफाश किया। इस मामले में कई अड़चनें थी। इसमें लॉकअप का न होना भी पहली परेशानी थी।
क्या हुआ…
हालांकि इस मामले से जुडे़ कई अहम तथ्यों को एमबीएम न्यूज नेटवर्क द्वारा सोमवार को ही उजागर कर दिया गया था, लेकिन मंगलवार की जानकारी के मुताबिक गिरफतार उद्योगपतियों द्वारा बैटरी स्क्रैप से लैड इनगटस बनाने का काम किया जाता था, जिसे हिमाचल के कई डीलर्स को बेचा जाता था। सनद रहे कि उत्तर भारत में बैटरियों के उत्पादन में भी हिमाचल अग्रणी है। विशेषज्ञों का कहना है कि फ्रॉड के बाद उत्पाद को सस्ते दाम पर बेचने का भी मौका मिल जाता है। इसका असर ईमानदारी से टैक्स अदा कर रहे उद्योगों पर भी पड़ता है। सनद रहे कि ऐसे ट्रेडर्स से कच्चे माल की खरीद दिखाई गई थी, जो वजूद में ही नहीं थे। खरीद के लिए बकायदा फर्जी बिल तैयार किए गए, जिसमें जीएसटी की अदायगी को भी दिखाया गया था।