नाहन (एमबीएम न्यूज़): विधायक एवं पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डा. राजीव बिंदल के जीवन के संस्मरणों पर आधारित ‘यादें’ शीर्षक से लिखित पुस्तक का सर्किट हाउस नाहन एक सादे समारोह में हिमाचल के वेटरन जनर्लिस्ट और प्रेस क्लब सिरमौर के प्रधान एस.पी. जैरथ ने विमोचन किया। विमोचन अवसर पर डा. राजीव बिंदल, भाजपा जिला अध्यक्ष सुख राम चौधरी, पच्छाद के विधायक सुरेश कश्यप, शिलाई के विधायक बलदेव तोमर तथा असलम खान भी उपस्थित थे।
इस पुस्तक में डा. बिंदल ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक लम्हों को संकलित किया है। पुस्तक में जीवन के संघर्ष, कई अनछुए पहलुओं को भी उजागर किया गया है।
डा. बिंदल की इस पुस्तके के पन्नों पर उतरने के बाद ही उनके जीवन के संघर्ष और उनके सेवा भाव को परखा जा सकता है। पुस्तक से मालूम पड़ा कि संघर्ष उनके जीवन की नियति बन गई है फिर चाहे वह उनके झारखंड के दिनों का शुरूआती जीवन हो या फिर आज नाहन के विधायक के रूप में जन सेवा।कदम-कदम पर डा. बिंदल को विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। लोगों के अधिकारों की आवाज उठाना, संघर्ष करना उनके जीवन का अहम हिस्सा बन गया। हां, उन्हें इस यात्रा में लोगों का साथ, प्या और स्नेह जरूर मिला।
एक आम बालक की तरह डा. बिंदल का आरम्भिक जीवन माता-पिता और बड़े भाईयों की छत्र-छाया में आगे बढ़ा। परिवार में धन और मान की कमी नहीं थी। किन्तु डा. बिंदल के भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। पिता उन्हें राजनीति से दूर रखना चाहते थे, किन्तु डा. बिंदल को खुद ही पता नहीं चला कि नियति ने उनके लिए कुछ ओर ही सोचा रखा था। यह पुस्तक एक कम उम्र के युवक ‘राजीव’ के सोलन से निकल कर झारखंड आदिवासी क्षेत्र में विपरीत परिस्थतियों में सेवा भाव को परिलक्षित करती है। आदिवासी क्षेत्र में जान को जोखिम में डालकर राजीव ने जिस प्रकार दीन-हीन, उपेक्षित आदिवासियों की सेवा की राह चुनी वह अपने आप में एक बड़ा कार्य था।
डा. बिंदल की पुस्तक में जहां उनके जीवन के संघर्ष, समाज सेवा से जुड़े संस्मरण कैद हैं वहीं आपात काल के दौरान की घटनाएं भी कलमबद्ध है। आपातकाल में डा. बिंदल वर्ष 1976 में लगभग साढ़े चार माह जले में रह और उन्होंने अमानवीय यातनाएं सही। यह वही समय था जब इंदिरा गांधी के शासनकान में लोकतंत्र का गला घोंटा गया और आवाज उठाने वालों को जेल की काली कोठरी में डाल दिया गया।
डा. बिंदल की इस पुस्तके के पन्नों पर उतरने के बाद ही उनके जीवन के संघर्ष और उनके सेवा भाव को परखा जा सकता है। पुस्तक से मालूम पड़ा कि संघर्ष उनके जीवन की नियति बन गई है फिर चाहे वह उनके झारखंड के दिनों का शुरूआती जीवन हो या फिर आज नाहन के विधायक के रूप में जन सेवा।कदम-कदम पर डा. बिंदल को विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। लोगों के अधिकारों की आवाज उठाना, संघर्ष करना उनके जीवन का अहम हिस्सा बन गया। हां, उन्हें इस यात्रा में लोगों का साथ, प्या और स्नेह जरूर मिला।
एक आम बालक की तरह डा. बिंदल का आरम्भिक जीवन माता-पिता और बड़े भाईयों की छत्र-छाया में आगे बढ़ा। परिवार में धन और मान की कमी नहीं थी। किन्तु डा. बिंदल के भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। पिता उन्हें राजनीति से दूर रखना चाहते थे, किन्तु डा. बिंदल को खुद ही पता नहीं चला कि नियति ने उनके लिए कुछ ओर ही सोचा रखा था। यह पुस्तक एक कम उम्र के युवक ‘राजीव’ के सोलन से निकल कर झारखंड आदिवासी क्षेत्र में विपरीत परिस्थतियों में सेवा भाव को परिलक्षित करती है। आदिवासी क्षेत्र में जान को जोखिम में डालकर राजीव ने जिस प्रकार दीन-हीन, उपेक्षित आदिवासियों की सेवा की राह चुनी वह अपने आप में एक बड़ा कार्य था।
डा. बिंदल की पुस्तक में जहां उनके जीवन के संघर्ष, समाज सेवा से जुड़े संस्मरण कैद हैं वहीं आपात काल के दौरान की घटनाएं भी कलमबद्ध है। आपातकाल में डा. बिंदल वर्ष 1976 में लगभग साढ़े चार माह जले में रह और उन्होंने अमानवीय यातनाएं सही। यह वही समय था जब इंदिरा गांधी के शासनकान में लोकतंत्र का गला घोंटा गया और आवाज उठाने वालों को जेल की काली कोठरी में डाल दिया गया।