बिलासपुर (अभिषेक मिश्रा): आधुनिक युग में जहां बढ़ती हुई जनसंख्या के चलते कंकरीट के भवनों के कारण खेत खलिहानों का दायरा सिकुड़ रहा है, किसानों-बागवानों के जीवन यापन के लिए पुश्तैनी जमीन पूरी नहीं पड़ रही है। आर्थिक तंगी से जूझ रहा किसान-बागवान अपने पुरखों के व्यवसाय से पलायन कर रहा है। ऐसे में उन्नतशील प्रयोग धर्मी जुझारू किसान-बागवान अपनी भूमि पर निरंतर फलों व अन्य खाद्य उत्पादों के पौधों के लिए नये प्रयोग करके न केवल लोगों में उदाहरण बने हुए हैं, बल्कि प्राकृतिक स्त्रोतों का भरपूर लाभ उठाकर खेतों में नई-नई फसलों की सम्भावनायें तलाश कर कृषकों में आर्थिक क्रान्ति की नींव रख रहे है।
इस फेहरिस्त में जिला बिलासपुर की पंचायत डोबा के गांव करोट के प्रेम सिंह ठाकुर का नाम अग्रणी है। आठ बीघा से भी अधिक क्षेत्र में फैली अपनी जमीन पर बीसियों प्रकार के फलों के पौधों को आधुनिक पद्धति से विकसित करके उन्होंने न केवल बागवानी के क्षेत्र में एक मिसाल कायम की है, अपितू सुनियोजित ढंग से अपनी भूमि की हर छोटी से छोटी जगह का प्रयोग करते हुए अपनी आर्थिकी को भी सुदृड़ किया है।
प्रेम सिंह ठाकुर के खेतों से गुजरने वाली नहर के ठहरे हुए पानी से निर्मित कीचड़ से अनुपयोगी होती अपनी भूमि पर इन्होंने बड़ी ईलायची के पौधे उगाकर जिला व प्रदेश के किसानों को सम्पन्नता का नया मार्ग दिखाया है।
ठाकुर को इस बात को लेकर मलाल था कि उनके खेतों से गुजरने वाली नहर के किनारों पर जहां जहां भी पानी ठहरा है वहां कीचड़ के कारण कोई भी फसल नहीं उगाई जा रही थी और वे जगह खाली रह रही थी। इसी बीच उन्हें एक अन्य राज्य में कृषक भ्रमण कार्यक्रम में जाने का मौका मिला, और इसी दौरान जब उन्होंने अत्यधिक नमी वाली भूमि पर बड़ी ईलायची की फसल देखी तो उनके दिमाग में अपने खेतो में नहर के साथ खाली बेकार पड़ी जमीन पर बड़ी ईलायची उगाने का विचार आया।
उन्होंने वहां से केवल एक अच्छी नस्ल का ईलायची का पौधा लाकर अपने खेत के किनारे नमी वाली जगह में रोपा, जो तीन वर्ष के भीतर एक विशाल झाड़ के रूप में पनप उठा। उन्होंने इस झाड़ से कलमें निकालकर तीन फुट की दूरी पर रोपी, तो परिणाम और भी उत्साह जनक रहे और देखते ही देखते प्रेम सिंह ठाकुर ने एक पौधे से एक भरा पूरा ईलायची का बगीचा विकसित कर दिया।
अब वह अपनी अन्य शेष बची हुई जमीन में भी बड़ी ईलायची उगाने के प्रयास कर रहा है, जिसमें न केवल उसकी आमदन में एकदम उछाल ही आएगा, अपितू जिला व राज्य के अन्य किसानों को भी एक नई फसल के माध्यम से अपने सपने साकार करने के अवसर मिलेंगे।
क्या कहते हैं अधिकारी-
सम्बन्धित अधिकारी एवं विषय बस्तु विशेषज्ञ डॉ आरके शर्मा, का कहना है कि किसानों के लिए ईलायची की खेती वरदान साबित होगी। इसके लिए किसानों को अधिक मेहनत भी नहीं करनी होती है। बड़े झाड़ से कलम निकालकर नमी वाली भूमि विशेषतया नहरों के समीप कलम को रोपा जाता है। पौधा तीन वर्ष के भीतर तैयार हो जाता है और पैदावार देने लगता है। बन्दर व अन्य जंगली जानवर भी ईलायची के पौधे को नुकसान नहीं पहुंचाते है। प्रदेश में नहरों अथवा पानी के सत्रोतों के समीप किसान इस फसर को उगाकर भरपूर लाभ प्राप्त कर सकते है तथा प्रदेश में कृषि के क्षेत्र में नई ईबारत लिखकर साधन सम्पन्न हो सकते है ।
भाव व गुणवता-
एक बीघा भूमि में बड़ी ईलायची की पैदावार 20 से तीस किलोग्राम तक रहती है और इसका बाजार भाव प्रति किलोग्राम 18 सौ से 2500 रूपए तक का है। खाने में मसाले के रूप में इस्तेमाल के अतिरिक्त बड़ी ईलायची को औषधी के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है ।