नाहन (रेणु कश्यप): शहर में हर साल भगवान श्री जगन्नाथ यात्रा का बेसब्री से इंतजार रहता है। एक ऐसा दिन होता है, जब पूरा शहर भगवान के रंग में रंग जाता है। चाहे मुस्लिम या फिर सिख बिरादरी हो, तमाम लोग इसका हिस्सा बनते हैं। लेकिन आज एमबीएम न्यूज नेटवर्क, जो खुलासा करने जा रहा है, उसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे।
शहर में भगवान श्री जगन्नाथ का प्राचीन मंदिर है। यहां स्थापित मूर्तियों की धार्मिक रिवायत के मुताबिक पूजा-अर्चना की जाती है। लेकिन आप जानकर दंग होंगे कि श्री जगन्नाथ रथ यात्रा में वास्तविक मूर्तियां नहीं होती, बल्कि ऐसी मूर्तियां रथ की सवारी करती हैं, जिनकी साल भर पूजा तक नहीं होती।
बताया यह भी जा रहा है जिन मूर्तियों को रथ में विराजमान करवाया जाता है, उनकी प्राण प्रतिष्ठा तक नहीं हुई है। ऐसे में भगवान आशीर्वाद कैसे दे सकते हैं, यह तो हजारों श्रद्धालुओं के लिए छलावा ही हो सकता है। इन मूर्तियों को मंदिर के ही हॉल में शीशे में बंद रखा जाता है। इस साल नौंवी जगन्नाथ यात्रा का आयोजन हो रहा है। मतलब 8 साल से इस बात का किसी को पता तक नहीं था कि रथ में सवार भगवान की मूर्तियां वास्तविक नहीं है।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क की पड़ताल में यह भी पता चला है कि रथयात्रा के लिए न केवल शहर से ही बल्कि आसपास के इलाकों से भी चंदा एकत्रित किया जाता है। पड़ताल में पता चला है कि प्राचीन मंदिर की वास्तविक भगवान श्री जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा सहित सुदर्शन जी की मूर्तियों को रोजाना सात बार भोग लगाया जाना चाहिए, लेकिन शीशे में बंद मूर्तियों को तो साल में मात्र एक बार ही निकाला जाता है।
कब होती है रथयात्रा..
बताया गया कि शास्त्रों के मुताबिक आषाढ मास के शुक्लपक्ष, पुक्ष्य नक्षत्र व द्वितीय तिथि को ही यात्रा शुरू होती है। उड़ीसा के पुरी धाम में यह यात्रा 10 दिन तक चलती है। वहीं शहर में इसे एक दिन में ही निपटा दिया जाता है। इस साल 2 जुलाई को यात्रा निकाली जानी है, जबकि इस दिन नक्षत्र योग है ही नहीं। शास्त्रों के मुताबिक निर्धारित तिथि पर ही भगवान नगर परिक्रमा पर निकलते हैं। इसके नौ दिन बाद भगवान श्री कृष्ण हरि शयनी एकादशी पर चार मास की निद्रा में चले जाते हैं।
बड़ा सवाल…
9 सालों से रथयात्रा का आयोजन हो रहा है, लेकिन प्रशासन चुप्पी साधे रहा। सवाल इस बात पर उठता है कि आयोजन को लेकर एकत्रित किए जाने वाले चंदे का लेखा-जोखा क्यों नहीं लिया जाता। सबसे बड़ी बात यह है कि प्राचीन मंदिर के परिसर का इस्तेमाल ही आयोजन के लिए किया जाता है। इससे लोगों पर इस बात का प्रभाव रहता है कि रथयात्रा का सीधा संबंध मंदिर कमेटी से ही है। इसके अलावा चल मूर्तियां भी मंदिर परिसर में ही रखी गई हैं। कुल मिलाकर देखना है कि अब मामला प्रशासन के संज्ञान में आ गया है तो किस तरह की कार्रवाई अमल में लाई जाती है।
पढि़ए, इस कथित छलावे पर कौन, क्या बोला..
श्री जगन्नाथ रथयत्रा मंडल के अध्यक्ष प्रकाश बंसल का कहना है कि श्री जगन्नाथ पुरी में 9 दिन तक रथ यात्रा चलती है। इसलिए नाहन में किसी भी दिन रथयात्रा का आयोजन किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि चल मूर्ति को रथयात्रा में बिठाया जाता है। अचल मूर्ति मंदिर में ही रहती है।
विख्यात पंडित सोमदत्त शास्त्री का कहना है कि मनमुखी काम चल रहा है। उनका कहना है कि शास्त्रों के अनुसार ही आयोजन होना चाहिए। लेकिन रथयात्रा मंडल अपनी मर्जी ही चलाता है। उनका कहना है कि मूर्तियां चल व अचल होती है। चल मूर्ति दशनार्थ होती है। लेकिन साल भर बेकद्री भी गलत बात है।
उधर डीसी सिरमौर बलबीर चंद बडालिया ने कहा कि रथ यात्रा के लिए जो शास्त्रों की विधि के अनुसार तिथि है वही तिथि होनी चाहिए। रथयात्रा के लिए प्रशासन से अनुमति लेना जरूरी है। उन्होंने कहा कि अब तक किसी भी तरह की अनुमति नहीं ली गई है।