मंडी (वी कुमार) : आज हम आपको एक ऐसी पत्नी की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसकी रूचि तो संगीत में थी, लेकिन उसने पति के कहने पर अपनी इस रूचि को दरकिनार कर दिया और हाथ में थाम ली राइफल। आप भी देखिये मंडी जिला की पहली महिला शूटर की यह रोचक कहानी।
यह कहानी है उस युवा दंपति की जिसने ऐसे क्षेत्र को चुना है, जिसकी हिमाचल प्रदेश में संभावनाएं न के बराबर हैं। हालांकि हमीरपुर जिला से संबंध रखने वाले विजय कुमार शूटिंग के खेल में प्रदेश और देश का नाम विश्व भर में रोशन कर चुके हैं, लेकिन बावजूद इसके हिमाचल प्रदेश में शूटिंग जैसे खेल को बढ़ावा देने की दिशा में कोई सार्थक प्रयास नहीं हो रहे हैं।
मंडी जिला के 25 वर्षीय मनीष गुलेरिया बीते 6 वर्षों से शूटिंग के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। दो वर्ष पहले जब मनीष और नैंसी ने लव मैरिज की तो दोनों की दिशाएं विपरीत थी। नैंसी संगीत में रूचि रखती थी तो मनीष शूटिंग में। कुछ दिन पहले जब मनीष ने नैंसी से शूटिंग की फील्ड में आने को कहा तो नैंसी ने भी इसके लिए अपनी हामी भर दी।
नैंसी के हां करने की देर थी, उसके बाद मनीष ने अपनी पत्नी को शूटिंग की फील्ड में मात्र दो सप्ताह में इतना माहिर बना दिया कि नैंसी ने राज्य स्तर पर गोल्ड मैडल भी जीत लिया।
यह प्रतियोगिता हिमाचल प्रदेश राइफल एसोसिएशन की तरफ से हालही में सोलन जिला में आयोजित की गई थी, जिसमें नैंसी ने 400 में से 386 अंक लेकर गोल्ड मैडल पर अपना कब्जा जमा लिया। नैंसी का निशाना इतना अचूक बन चुका है कि वह सीधा टारगेट को ही हिट करती है। नैंसी के पति मनीष गुलेरिया राष्ट्रीय स्तर की शूटिंग प्रतियोगिता में अभिनव बिंद्रा के साथ खेल चुके हैं। इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर आईएसएसएफ शूटर का दर्जा भी मिल चुका है। दोनों दंपति इस प्रकार से तैयारी कर रहे हैं ताकि अगले ओलंपिक में इन दोनों का नाम लिस्ट से कोई हटा न सके।
बता दें कि नैंसी गुलेरिया मंडी जिला की पहली महिला राइफल शूटर भी बन चुकी हैं। इससे पहले जिला की किसी महिला ने इस क्षेत्र को नहीं चुना, क्योंकि यहां पर इसकी तैयारी के लिए कोई प्रावधान ही नहीं है।
मनीष गुलेरिया ने अपने खर्चे पर एक कमरा किराये पर ले रखा है, जहां पर वह शूटिंग की प्रैक्टिस करते हैं। इसके साथ ही राइफल से लेकर अन्य सारा सामान भी इन्होंने लाखों रुपए खर्च करके खुद ही खरीदा है। अपने दम पर इतना कुछ कर चुके इस दंपति को आगे बढ़ने के लिए सरकारी मदद की दरकार है।
राज्य स्तर पर आयोजित हुई प्रतियोगिता में नैंसी को सिर्फ गोल्ड मैडल भी मिला है, जबकि प्रोत्साहन राशि के नाम पर कुछ भी नहीं दिया गया है। अब आगे के लिए जितना भी खर्च होगा, वह भी इन्हें अपने स्तर पर ही करना होगा।
ऐसे में सवाल बड़ा है कि जब सरकार खेलों को बढ़ावा देने के लिए करोड़ों के बजट का प्रावधान करती है तो फिर ऐसे जरूरतमंद खिलाडि़यों तक वह मदद क्यों नहीं पहुंच पाती। ऐसे खिलाडि़यों की मदद के लिए सरकारों और अन्य संस्थाओं को आगे आना ही होगा। तभी इनके मनोबल को बढ़ाया जा सकता है।