नाहन, 22 नवंबर : अरसा पहले सत्य आपराधिक घटनाओं पर आधारित (based on true criminal incidents) सोनी टीवी के ‘क्राइम पैट्रोल’ में एक ‘बांसुरीवाला’ एपिसोड (Episode) प्रसारित हुआ था। इसमें अंडमान-निकोबार से 25 साल बाद एक शख्स को पुलिस कर्मी की कोशिश से अपना घर मिल पाया था। 11-12 साल की उम्र में वो घर से गांव के दबंग से डर कर ऐसा भागा था कि उसे वापस लौटने के लिए अपने गांव का नाम ही कभी याद नहीं आया।
खैर, शहर में क्राइम पैट्रोल (Crime Petrol) के इस एपिसोड से भी संगीन मामला (serious matter) सामने आया था। 11 साल की उम्र में झारखंड के एक गांव से नन्हीं बच्ची सुरेखा (काल्पनिक नाम) लापता हो गई थी। नक्सल प्रभावित इलाके (naxal affected areas) से गायब लड़की का कोई सुराग तक नहीं लग पाया। 8 सितंबर 2021 को अचानक ही ये सामने आया कि नाहन के कांशीवाला में एक युवती नरकीय जीवन (hell life) व्यतीत कर रही है। यहीं से पारंगत स्कूल की चेयरपर्सन (Chair Person) तनवी नरुला ने युवती को उसके परिवार से मिलवाने की ठान ली। चंद रोज तक तन्वी को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन पुलिस भी तनवी की इस मुहिम (campaign) में शिद्दत से शामिल हो गई।
बता दें कि मैलेपन का जीवन व्यतीत कर रही सुरेखा को तनवी ही वो सब सामान उपलब्ध करवाती है जो एक महिला की स्वच्छता के लिए आवश्यक होता है।
हालांकि, एमबीएम न्यूज नेटवर्क द्वारा सुरेखा को रेस्क्यू करने का समाचार 26 सितंबर 2021 को भी प्रकाशित किया गया था, लेकिन चंद रोज पहले जब पुलिस अधीक्षक ओमापति जम्वाल ने पुलिस की मदद करने पर तनवी नरुला को सम्मानित किया, तब इस बात का खुलासा हुआ कि कैसे एक युवती ने साहस व मानवता (courage and humanity) का परिचय देकर सुरेखा को 13 साल बाद अपने परिवार से मिलवा दिया।
बगैर पगार की घरेलू नौकरानी बनकर रहने वाली सुरेखा को ये कतई भी नहीं पता था कि आज उसकी एक बहन झारखंड पुलिस में लेडी कांस्टेबल है तो दूसरी नर्स बन चुकी है।
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बबीता राणा के नेतृत्व में चले इस ऑपरेशन की मुहिम उसी दिन रंग ले आई थी, जब मां को सामने देखकर सुरेखा फूट-फूटकर रो पड़ी। मिरगी (epilepsy) की मरीज बन चुकी सुरेखा को कतई भी नहीं लगता था कि इस हालत में उसका परिवार उसे स्वीकार कर लेगा। दीगर है कि 13 साल के इस समय के बीच सुरेखा के पिता की मृत्यु भी हो चुकी थी। एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में पुलिस अधीक्षक ओमापति जम्वाल ने कहा कि वो पल काफी भावुक कर देने वाले होते हैं, जब किसी परिवार को सालों बाद अपना कोई बिछड़ा मिल जाता है, जिसके घर आने की आस तक नहीं होती।
मार्मिक दास्तां के ये पहलू….
तनवी नरूला की कोशिश पर स्थानीय पुलिस (Local Police) ने भी मानवता का परिचय दिया। सुरेखा के बारे में ये तो शुरू में ही पता चल गया था कि वो झारखंड की रहने वाली है, लेकिन उसका गांव तलाश करना ‘घास के ढेर में सुई तलाशने’ जैसा था। लेकिन 17 दिन की जददोजहद (striving) के बाद पुलिस ने न केवल सुरेखा के गांव को ढूंढ निकाला, बल्कि उसे मां के सुपुर्द भी कर दिया। मगर सुरेखा की आंखें अपने पिता को भी तलाशती रही, जो इस दुनिया में नहीं रहे थे। मानवता की इस दास्तां में झारखंड पुलिस की भी भूमिका अहम रही।
एसपी टू एसपी (SP to SP Level) के स्तर पर भी भरसक कोशिश की गई। गांव से तीन लड़कियों को अगवा करने वाले शख्स की मौत हो चुकी है। तफ्तीश (investigation) में ये सामने आया कि नक्सल प्रभावित गांव से सुरेखा के साथ दो अन्य बच्चियां भी लापता हुई थी, जिनका अब तक भी कोई सुराग नहीं मिला है। तनवी की कोशिश से सुरेखा की किस्मत ने पलटा खाया, वो अपने घर पहुंच चुकी है। अब केवल ये उम्मीद की जानी चाहिए कि सुरेखा ने अपने जीवन के जो कठिन 13 साल नाहन में बिताए हैं, उसका हक उसे अदा कर दिया जाए। सुरेखा की सोच भी देखने लायक है। अगर पुलिस की मानें तो उसने उस परिवार के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया है, जिनके घर पर वो 13 साल तक नरकीय जीवन जीती रही।
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ASP) बबीता राणा ने कहा कि सबसे पहले झारखंड पुलिस से युवती के बारे में जानकारी साझा की गई थी। 17 दिन की कोशिश के बाद 25 सितंबर 2021 को झारखंड पुलिस के साथ युवती की मां नाहन पहुंची थी।
गौरतलब है कि जब बच्ची घर से लापता हुई थी, उस समय परिवार की आर्थिक स्थिति भी दयनीय थी। लेकिन अब दो बहनें इस काबिल हो गई थी कि वो अपनी मां को झारखंड के रांची जनपद के नक्सल प्रभावित गांव से नाहन तक बिछड़ी बहन को घर लाने के लिए भेज सकती थी।